विश्व में हल्दी उत्पादन में भारत का मुख्य स्थान है. हल्दी के पूरे विश्व के उत्पादन का 60 प्रतिशत भारत में होता है.

रेतीली और दोमट भूमि अधिक उपयुक्त होती है. इसे बगीचों में व अर्ध छायादार स्थानों में भी लगाया जा सकता है.

खेती की तैयारी हेतु रबी की फसल लेने के बाद मिट्टी पलटने वाले हल से दो जुताई करके फिर देशी हल से 3-4 जुताई करें व भूमि को समतल करें.

हल्दी की बुआई 15 मई से जुलाई के प्रथम सप्ताह तक की जा सकती है.

प्रति हेक्टेयर बुआई के लिए कम से कम 2500 किग्रा प्रकंदो की आवश्यकता होती हैं.

बोने से पूर्व बीज को 24 घंटे तक भीगे बोरे में लपेट कर रखने से अंकुरण आसानी से होता है.

लंबे समय की फसल होने के कारण इसको अन्य फसलों की अपेक्षा अधिक खाद एवं उर्वरक की आवश्यकता होती है. 20 या 25 टन अच्छा सड़ा गोबर का खाद 100 किलो नाइट्रोजन 50 किलो फास्फोरस एवं 50 किलो पोटाश खाद प्रति हेक्टेयर की दर से देना चाहिए.

अखिल भारतीय मसाला अनुसंधन परियोजना पोटांगी द्वारा विकसित जातियां रोमा, सुरमा, रंगा एवं रश्मि, अधिक उत्पादन देने वाली जातियां हैं. ये जातियां औषतन 240 से 255 दिन में तैयार हो जाती है

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